भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देहगीत 1 / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 3 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० के० मधु |संग्रह=बुतों के शहर में }} <poem> देह- अनब…)
देह-
अनबोलते शब्द
देह-
अनसुने स्वर
देह-
झंकृत वीणा का
मौन राग
सांसों की गुफा में
सुलगती आग
पेड़ों की छांव में
गहरी नींद
समुद्र की गोद में
डोलती लहर
पहाड़ की बांह में
लरजते निर्झर
देह-
एक लंबा सफर
कभी शाम कभी दोपहर
पीती कुछ अमृत
कुछ जहर
देह-
गुलमोहर और अमलतास
देह-
स्पर्श का सुखद अहसास
मेरा उसका
निश्छल विश्वास
देह-
एक बड़ा सेतुबंध
बिन लड़े
कभी जीतती बड़ी जंग
और लड़कर भी
कभी हारती
जीवन का द्वन्द्व
देहों की दुनिया में
देह छोड़ती
एक बड़ा प्रश्न।