Last modified on 2 जून 2010, at 05:05

तुमने अच्छी प्रीति निभायी! / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:05, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


तुमने अच्छी प्रीति निभायी!
एक बार भी मोहन! ब्रज की ओर न दृष्टि फिरायी!
 
माना राजकाज था बंधन
जनहित में अर्पित था जीवन
किन्तु रुक्मिणी से मिलते क्षण
राधा याद न आयी!
 
गाँव गली कितनी भी छूटे
डोर प्रेम की कैसे टूटे!
क्यों रच-रचकर रास अनूठे
भोली प्रिया रिझायी!
 
राधा ने थी पढ़ी न गीता
सोचा भी, उसपर क्या बीता!
रोती फिरी लिये घट रीता
यमुना-तीर कन्हाई!

तुमने अच्छी प्रीति निभायी!
एक बार भी मोहन! ब्रज की ओर न दृष्टि फिरायी!