Last modified on 6 जनवरी 2011, at 03:54

हम बचे रहेंगे / विमलेश त्रिपाठी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:54, 6 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> हमने ही बना…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमने ही बनाए वे रास्ते
जिनपर चलने से
डरते हैं हम

हमने ही किए वे सारे काम
जिन्हें करने से
अपने बच्चों को रोकते हैं हम

हमने किया वही आज तक
जिसको दूसरे करते हैं
तो बुरा कहते हैं हम

हमने ही एक साथ
जी दो ज़िंदगियाँ
और इतने बेशर्म हो गए
कि ख़ुद से अलग हो जाने का
मलाल नहीं रहा कभी

वे हम ही हैं
जो चाहते हैं कि
लोग हमें समय का मसीहा समझें

वे हम ही हैं
जिन्हें इलाज की सबसे अधिक ज़रूरत
समय नहीं
सदी नहीं
इतिहास और भविष्य भी नहीं
सबसे पहले ख़ुद को ही खंगालने की ज़रूरत

ख़ुद को ख़ुद के सामने खड़ा करना
ख़ौफ़ से नहीं
विश्वास से
शर्म से नहीं
गौरव से

और कहना समेकित स्वर में
कि हम बचे रहेंगे
बचे रहेंगे हम....।