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इतने रंग न बाँधो / रमेश रंजक
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इतने रंग न बाँधो !
चेहरे पर,
कि—लौटे खाली हाथ नज़र
ये उड़ती-उड़ती मुस्कानें
खट्टी-मीठी-सी
चिनगारी-सी नज़रें,
आँखें बुझी अँगीठी-सी
ये चिकना-चिकना रूखापन
अमृत मिला ज़हर
चेहरे पर
इतने रंग न बाँधो !
सूरत लगे पत्रिका-सी
मेरा प्रश्न लगे उत्तर के
आगे चपरासी
काँटे जैसे लगें—
गुलाबी शब्दों के अक्षर
चेहरे पर
इतने रंग न बाँधो !