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जसुमति लै पलिका पौढ़ावति / सूरदास

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राग कैदारौ


जसुमति लै पलिका पौढ़ावति ।
मेरौ आजु अतिहिं बिरुझानौ, यह कहि-कहि मधुरै सुर गावति ॥
पौढ़ि गई हरुऐं करि आपुन, अंग मोर तब हरि जँभुआने ।
कर सौं ठोंकि सुतहि दुलरावति, चटपटाइ बैठे अतुराने ॥
पौढ़ौ लाल, कथा इक कहिहौं, अति मीठी, स्रवननि कौं प्यारी ।
यह सुनि सूर स्याम मन हरषे, पौढ़ि गए हँसि देत हुँकारी ॥

भावार्थ :-- श्रीयशोदाजी श्यामसुन्दरको गोदमें लेकर छोटे पलँगपर सुलाती हैं ।मेरा लाल आज बहुत अधिक खीझ गया! यह कहकर मधुर स्वरसे गान करती हैं।वे स्वयं भी धीरे से लेट गयीं; तब श्यामसुन्दर ने शरीर को मोड़कर (अँगड़ाई लेकर)जम्हाई ली । माता हाथसे थपकी देकर पुत्रको चुचकारने लगी, इतने में मोहन बड़ीआतुरतासे हड़बड़ाकर उठ बैठे । (तब माता ने कहा-) `लाल! लेट जाओ! मैं अत्यन्त मधुर और कानोंको प्रिय लगनेवाली एक कहानी सुनाऊँगी !'सूरदासजी कहते हैं कि यह सुनकर श्यामसुन्दर मनमें हर्षित हो उठे, लेट गये औरहँसते हुए हुँकारी देने लगे ।