भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गजबे मुकद्दर हो गइल / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
Manojsinghbhawuk (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:35, 29 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> गजबे मुकद्दर हो गइल ग…)
KKGlobal}}
गजबे मुकद्दर हो गइल
गड़ही समुन्दर हो गइल
साथी त टंगरी खींच के
हमरा बराबर हो गइल
घरही में सिक्सर तान के
बबुआ सिकन्दर हो गइल
राजा मदारी कब भइल?
जब लोग बानर हो गइल
'भावुक' कहाँ भावुक रहल
ईहो त पत्थर हो गइल