भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उम्मीद / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आँख का इलाज कराने जाते

पिता से दस क़दम आगे चलता हूँ मैं


आँख की रोशनी लौटने की उम्मीद में

पिता की आँखें चमकती हैं उम्मीद से


उस चमक में मैं उन्हें दिखता हूँ

दस क़दम आगे चलता हुआ ।


(1989)