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नारी की आभा (ताँका) / सरस्वती माथुर
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1
नारी की आभा
सृष्टि के सूर्य- सी है
उजास लाती
चिड़िया-सी उड़ती
पंख फैला नभ में ।
2
सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
बिना रुके ह़ी
अविराम बहते
सागर जा ठहरे ।
3
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
4
ऋतु थी प्यासी
तितली- सी उड़ती
रस पीकर
कलियों से खेलती
रसपगी हो जाती ।
5
घुँघरू बजा
फागुनी हवाएँ भी
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
हरी -भरी धरा पे ।