भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंसत / नीरज दइया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 27 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> जीवन में हमारे आत…)
जीवन में हमारे
आता है प्रेम बसंत की तरह
और प्रेम ही लाता है- बसंत
वर्ष में कुछ खास दिन होते हैं-
जब होता है प्रेम ।
उदासी को दूर करता
प्रेम उदित होता है
सूर्य की भांति
और जगमगाता है जीवन
हम तब जान पाते हैं
जब हमारे ही हाथों
अंतरिक्ष में पतंग बनकर
लहराता है प्रेम
प्रेम की पतंग
रचती है भीतर राग
दिखते हैं बाहर रंग
सुरीले संगीत में डूबा
नृत्य करता है मन
और प्रेम में बंधे
उडने लगते हैं हम
कुछ भी नहीं होता हमारे बस में
जब कटती है डोर
धड़ाम से गिरते हैं हम-
ज़मीन पर
करते नहीं प्रतीक्षा
फिर भी लौट-लौट आता है
पुन: पुन: जीवन में प्रेम
तभी बार-बार लौटता है बसंत !