भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधिकार / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 6 नवम्बर 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना;

वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त रितुराज,नहीं
जिसने देखी जाने की राह|

वे सूने से नयन,नहीं
जिनमें बनते आंसू मोती,
वह प्राणों की सेज,नही
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती;


ऎसा तेरा लोक, वेदना
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार!