भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोशिश / अनिता भारती
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह=एक क़दम मेरा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बुनियादी तौर पर हर औरत
मन से स्वतन्त्र होती है,
उसे नहीं भाता ढोंग
पर फिर भी करती है।
लम्बी टिकुली, चूड़ी भरे हाथ
सिन्दूर सिक्त माथा
उसे कभी नहीं लुभा पाता
फिर भी करती है अभिनय--
इसमें रचे- बसे रहने का
शायद...
यही रास्ता शेष है उसके जीने का।