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सानती हूँ गीली माटी / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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सानती हूँ गीली माटी
पूजती हूँ पार्थिव
चढ़ाती हूँ चन्दन, पुष्प
अर्पित करती हूँ सर्वस्व
पीती हूँ हलाहल
हो जाती हूँ उन्मत्त
धारण करती हूँ 'ॐ'
करती हूँ भस्म
बन जाती हूँ 'सती'
"नाथ"
कभी तुम भी तो
बन जाओ
"शिव"