भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुगत करूं थानै / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 21 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लै मेरी आत्मा
मुगत करूं थानै आज
म्हारै सबदां रै मकड़जाळ स्यूं

जठै थारौ हुवणौ कीं नी
बठै म्हारी के बिसात ?
तोडूं आज आ कैद .....
इण इश्तेहार साथै, क
मेरा अजीजो !
आज स्यूं मेरे साहित्यकार नै
म्हारी आत्मा स्यूं जुदा समझ्या
क्यूं‘कै मैं भूल ग्यौ हो
कै साहित्य आत्मा रो सिरजण नही है
खेल है,
मर अर बुद्धि रो !
मोटा पाठ