भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंखियां रौ बवार देखूंला / सत्येन जोशी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:49, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्येन जोशी |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{K…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंखियां रौ बवार देखूंला
धुंध रै आर -पार देखूंला

देखली आपरी अणूताई
आज खुदरौ तुमार देखूंला

जाणै पासौ कदै पलट जावै
दांव म्है भी लगां’र देखूंला

नख निवाई भी आस कोनी है
कांकरा वार वार देखूंला

रात री खाक में है टाबरियौ
आंगणै में उतार देखूंला

मौत, मनवार सूं नहीं मूंगी
जिंदगाणी गुजार देखूंला
 
वो बकारै घड़ी घड़ी भर में
देखलूंला, अबार देखूंला