♦ रचनाकार: अज्ञात
जाट का मैं लाडला तिरखा लगी सरीर
अगन लगी बुझती नईं, बिना पिए जल-नीर
बिना पिए जल-नीर,--रस्ते में कुयाँ चुनाया
किस पापी ने यै जुल्म कमाया, उस पै डोल ना पाया!
भावार्थ
--'मैं जाट पिता का लाड़ला पुत्र हूँ, मुझे प्यास लगी है । मेरे मन में जो आग लगी है वह बिना पानी पिए नहीं
बुझेगी । हालाँकि रास्ते में पक्का कुआँ बना हुआ है लेकिन न जाने किस पापी ने यह ज़ुल्म किया है कि उस पर
डोल नहीं रखा है ।