भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़ी लुगाई / श्याम महर्षि

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 14 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम महर्षि |संग्रह=अड़वो / श्याम महर्षि }} [[Category:…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


म्हनैं याद है बो दिन
जिणनै ओजूं ई
बियां ई देखूं
जाणै आज ई
बीती है बा घटना
म्हारी आंख्या आगै।

दिल्ली सूं बीकानेर
जावण वाळी बस,
राजगढ़ बस अड्डे सूं
चालतां ई
बा बूढ़ी लुगाई दबगी
रामजी री गांय दांई।

ऐकर चांरूमेर
हाको सो हुयो
अर थोड़ी देर पछै चुप हुय‘र
सगळा लोग व्हीर हुयग्या
नौटंकी रा खिलाड़ी दांई।

मैली धोती पैरयां
हाथ मांय चिटियो लियोड़ी
बा धोळा केसां वाळी
बूढ़ी लुगाई
तारानगर-सरदारशहर-बीकानेर कानीं
बगणै वाळी बस नैं
आपरो खोळियो सूंप‘र
पड़ी रैयी बारह घण्टा तांई।

भारत मां नै
म्हैं कदैई
नीं देख पण
म्हारी दादी जिसी ई ही
बा बूढ़ी लुगाई।