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नाकों तक डूबा परिवेश / गुलाब सिंह

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नाकों तक डूबा परिवेश
जेब और जीभों के
बीच फँसा देश।

राहत है
ओठों पर
मन्द मुस्कराहट है
कोठों पर

सुनें रात
राष्ट्र के लिए
शुभ संदेश।

बाढ़ के मसायल पर
चार दशक
डूबे हैं
फ़ाइल पर

सूखे का संकट है
बूड़े का
क्लेश।

पिछलग्गू पानी ने
खतरे के हर निशान
छुए
राजधानी में

अब बचाव के लिए
चुनाव कौन
शेष?