भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे जो मरते नहीं / योसिफ़ ब्रोदस्की
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 27 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योसिफ़ ब्रोदस्की |अनुवादक=वरयाम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
वे जो मरते नहीं जिन्दा रहते हैं
साठ बरस तक, सत्तर तक,
उपदेश देते हैं
लिखते हैं संस्मरण
और उलझ जाते हैं अपनी ही टाँगों में ।
मैं ध्यान से देखता हूँ उनकी मुखाकृति को
जिस तरह देखते थे मिक्लूखा मक्लाई
पास आते वनवासियों के गोदने को ।
मिक्लूखा मक्लाई : प्रख्यात रूसी नृकुलविज्ञानी (1846-1888)