भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओस / अनातोली परपरा

Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 02:37, 1 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अनातोली पारपरा |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अनातोली पारपरा  » संग्रह: माँ की मीठी आवाज़
»  ओस


सुबह घास पर दिखे घनी

रत्न-राशि की कनी


नीलम-रूप झलकाए

हरित-मणि-सी छाए

कभी जले याकूत-सी

स्फटिक शुचि शरमाए


करे धरती का शृंगार

लगे मोहक सुभग तुषार


पल्लव-पल्लव छाए

बीज को अँखुआए

बने वह स्वाति-मुक्ता

चातक प्यास बुझाए


दुनिया में जीवन रचती

इसके बिना न घूमे धरती