पंजाबी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
काले काँ माहिया
बिछड़े सज्जनाँ दे
भुल्ल जांदे ने नाँ, माहिया !
भावार्थ
--'काले काग हैं
बिछुड़े हुए प्रेमियों के
नाम भी भूल जाते हैं ।'
काले काँ माहिया
बिछड़े सज्जनाँ दे
भुल्ल जांदे ने नाँ, माहिया !
भावार्थ
--'काले काग हैं
बिछुड़े हुए प्रेमियों के
नाम भी भूल जाते हैं ।'