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राति-द्यौस कटक सजे / घनानंद
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<कवित्त>
राति -द्यौस कटक सचे ही रहे, दहै दुख
कहा कहौं गति या वियोग बजमार की .
लियो घेरि औचक अकेली कै बिचारो जीव,
कछु न बसाति यों उपाव बलहारे की .
जान प्यारे, लागौ न गुहार तौ जुहार करि,
जूझ कै निकसि टेक गहै पनधारे की .
हेत-खेत धूरि चूर चूर ह्वै मिलैगी,तब
चलैंगी कहानी ‘घनआनन्द’ तिहारे की