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व्याकरण / सुलोचना वर्मा

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भावनाओं को शब्दों से ही पढ़ लो
क्यूँ व्याकरण के पीछे हो पड़े
कब आम लोगों ने व्याकरण का अनुसरण किया
कब अच्छे लगे लोगों को संबोधन ‘हे’, ‘अरे’
क्यूँ सुगम जीवन को जटिल बनाया
बना डाले यूँ हि किसने नियम ये कड़े
पिता के घर पर “संज्ञा” हुआ करती थी
बन गयी “सर्वनाम” पति के द्वार खड़े

हादशा; जो “त्वम” से शुरू हुआ था
और “आवाम” पर आकर अटका था
ना जाने कब “युवाम” और “यूयम” के रास्ते
हौले हौले “वयम” पर आ धमका है
हर परिस्थिति का “कारक”
“अपादान” की उत्पत्ति को भाँपता है
रिश्तों का “संधि-विच्छेद” करने
जीवन व्याकरण का नक्षत्र आ चमका है

लता का शब्द रूप पढ़-पढ़ कर,पढ़-पढ़ कर
ना जाने कितनो के ही आँसू बह गये
वो ज़ुल्म, जो हमारे बालमन पर हुआ था
परीक्षा उत्तीर्ण होने की चाह में सह गये
जीवन तब से कितना आगे निकल गया है
और एक आप हैं, की बस वहीं रह गये
मेरे हमकदम हो लो, मेरे बुद्धिजीवि मित्रों
साथ चलना ही जीवन है, ऐसा महापुरुष कह गये