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परावर्तन / राधावल्लभ त्रिपाठी
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साँझ के समय
भौंक रहे हैं कुत्ते गली में मिलकर
आधी रात के सन्नाटे में
सियार करते हैं हुआँ हुआँ
लौट कर आते हैं पहले किए हुए पाप
भीतर ही भीतर गँसते हैं, धँसते हैं
जो दिन बीत चुका था
और जिसे दफ़ना आए थे मन के मसान में
वह अचानक उठ खड़ा होता है
जैसे सपना टूटने पर आदमी
वह अचानक भीतर की कोई खिड़की खोलकर झाँकता है
और लगाता है ज़ोर से पुकार-- यह आ गया मैं!