भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोयलिया बोली / पूर्णिमा वर्मन

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:47, 16 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन }} Category:गीत शहर की हवाओं में<br> कैसी आवाज...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर की हवाओं में
कैसी आवाज़ें हैं
लगता है
गाँवों में कोयलिया बोली
नीलापन हँसता है
तारों में
फँसता है
गगन की घटाओं में
कैसी रचनाएँ हैं
लगता है
धरती पर फगुनाई होली
सड़कों पर नीम झरी
मौसम की
उड़ी परी
धरती के आँचल में
हरियल मनुहारें हैं
लगता है
यादों ने कोई गाँठ खोली