भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमको सजा मिलेगी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 टुल्लम टुल्ला गिल्ली डंडा, खेल रहे थे गद्दू|
इसी बीच में ठीक सामने, निकल पड़े थे दद्दू||

 गिल्ली लगी सामने कसकर, दद्दू का सिर फूटा|
डर के मारे गद्दू जी का, इधर पसीना छूटा||

 मार पड़ेगी यही सोचकर, गद्दू घर से भागे|
किंतु हाय तकदीर पड़ गये, दादीजी के आगे||

 दादी ने पकड़ा हाथों से, करदी बहुत धुनाई|
फोड़ा था दद्दू का सिर, तो सजा उन्होंने पाई||

 उल्टे सीधे काम किये,तो अब न दाल गलेगी|
फोड़ा अगर किसी का सिर तो, तुमको सजा मिलेगी