भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी पर लड़की / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 21 अक्टूबर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |अनुवादक= |संग्रह=कवि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी आँखों में बसी है
गीले कपड़ों में घर लौटती
शर्मीली लड़की की तस्वीर
गँव के निकट बहती नकटिया नदी
और उस लड़की के साथ
घर बसाने की स्वप्निल चाह में डूबी
मुहल्ले के तमाम लड़कों की शक़्ल

तेरे होंठ फूल हैं
जिनमें मिट्टी का उजाला जगमगाता है
तेरी आँखें आकाश
जो मुझे रात को सहलाता है
तेरे चुम्बन में मिट्टी की ताक़त है
ओ नदी किनारे घाट पर नहाती हुई लड़की
तेरा हृदय मेरा घर है
तेरी लबालब आँखें मेरा प्यार

तेरी आँखों में कुलबुलाता सपना
तेरे भीतर सुगबुगाता संघर्ष
अब मेरा है
तेरा दुख, बड़ा और गहरा दुख,
शान्त और उदास दुख, गम्भीर दुख
अब मेरा है