Last modified on 12 नवम्बर 2014, at 15:17

गूँगा कस्तूर / मुज़फ्फ़र ‘आज़िम’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 12 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुज़फ्फ़र ‘आज़िम’ |अनुवादक=निदा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न धूप ही पड़े यहाँ
न पवन चले
किस कुएँ में मुझ कस्तूर को
यह नीड़ दिया गया
पहाड़-सी हत्यारी दीवारें
यह कैसी मेरे चारों ओर खड़ी
किरणों वाली धूप के उतरने की सीढ़ी
हटाए दे रही हैं,
पवन के पंख
कुतर देती है,
जब दूर कहीं
कोई सूर्य दहकता है
कुएँ के भीतर
घना अँधेरा
ठंडा पड़ता जाता है,
मकड़ी के जाले
प्रातः काल का पत्ता
चबा चबा कर
निगल रहे हैं,
गीत कोई जो मेरे कानों तक आए
तो भीतर ही भीतर बहरापन
उसको चाँप चबाए
बोली फँस जाती है सीने में
तो पथरा जाती हैं।

शब्दार्थ
<references/>