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कट्यो रूंख / मोहन पुरी

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म्हैं देखूं हूं
जंगळ मांय
रूंख रोवता थका
आपणा-आपणा भोजन री
खोज में अपघात
कर रैया है,
घास-दोबड़ी रा आंगणां नैं
अंगरेजी बूंल्या चर रैया है...
अर ऊब रैया है सूरज
पवन सूं बातां करतां-करतां
...अर पसार दी है सड़क
आपणी टांग्यां
‘चतुर्भुज कॉरिडोर’ में
जिण पे आवण वाळा टैम में
मिनखां री लासां...
कारां चलावैगी।