जितना नूतन प्यार तुम्हारा / स्नेहलता स्नेह
जितना नूतन प्यार तुम्हारा,
उतनी मेरी व्यथा पुरानी
एक साथ कैसे निभ पाए,
सूना द्वार और अगवानी
तुमने जितनी संज्ञाओं से,
मेरा नामकरण कर डाला
मैंने उनको गूँथ-गूँथकर
साँसों की अर्पण की माला
जितना तीखा व्यंग्य तुम्हारा,
उतना मेरा अंतर मानी
एक साथ कैसे रह पाए,
मन में आग नयन में पानी
कभी-कभी मुस्काने वाले
फूल-शूल बन जाया करते
लहरों पर तिरनेवाले मझधार
कूल बन जाया करते
जितना गुंजित राग तुम्हारा,
उतना मेरा दर्द मुखर
एक साथ कैसे पल पाए,
मन में मौन अधर पर बानी।
सत्य सत्य है किंतु स्वप्न में भी कोई जीवन होता
स्वप्न अगर छलना है तो सत का सम्बल भी जल होता
जितनी दूर तुम्हारी मंज़िल उतनी मेरी राह अजानी
एक साथ कैसे मिल पाए, कवि का गीत संत की बानी।
एक साथ कैसे निभ पाए, सूना द्वार और अगवानी।।