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इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया / ग़ालिब
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Paru kharayat (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 28 अगस्त 2010 का अवतरण
इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पायी, दर्द बेदवा पाया ।
हाले-दिल नहीं मालूम लेकिन इस क़दर यानी,
हमने बारहा ढूँढा तुमने बारहा पाया ।
शोरे-पन्दे-नासेह ने ज़ख्म पर नमक छिड़का,
आपसे कोई पूछे, तुमने क्या मज़ा पाया ।