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अहिपन / राजकमल चौधरी
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अहिपनमे नहि लिखू फूल-पात लता चक्र
हे स्वप्न-सम्भवा कामिनि,
आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार ?
जखन पूर्णिमेक साँझमे
चन्द्रमा भ’ गेल अछि पीयर आ वक्र
आब नहि फोलि क’ राखू
अप्पन मोनक दुआर !
हे स्वप्न-सम्भवा कामिनी,
आब एहि घर आँगनमे आनागतक प्रतीक्षा
जुनि करू जुनि करू...
अहिपनक फूल-पात-लता बनि जाएत
गहुँमन साँप,
कोनो देवता नहि क’ सकताए अहाँक प्राण-रक्षा
पाबनिक रति बीति जाएत पूजा-विहीन !
परिणय विहीनः