नानी का संदूक / श्रीनाथ सिंह
नानी का सन्दूक निराला ,
हुआ धुएं से बेहद काला।
पीछे से वह खुल जाता है ,
आगे लटका रहता ताला।
चन्दन चौकी देखी उसमें ,
बेसन लौकी देखी उसमें।
बाली जौ की देखी उसमें ,
खाली जगहों में है ताला,
नानी का सन्दूक निराला।
शीशी में गंगा जल उसमें,
चींटी झींगुर खटमल उसमें।
ताम्र पत्र तुलसी दल उसमें ,
जगन्नाथ का भात उबाला।
नानी का सन्दूक निराला।
मिलता उसमें कागज कोरा ,
मिलती उसमें सूई व डोरा।
मिलता उसमें सीप कटोरा,
मिलती उसमें कौड़ी माला।
नानी का सन्दूक निराला
जब लड़कों को खाँसी आती ,
आती उसमें निकल दवाई।
कभी ढूँढने से मिल जाता ,
पेड़ा , बर्फी ,गट्टा लाई।
जो कुछ खाकर मरना चाहे ,
ढूंढे उसमें जहर धतूरा।
डर है चोर न उसे चुरा लें ,
समझो उसे म्यूजियम पूरा।
उसको छोड़ न लेगी नानी ,
दिल्ली का सिंहासन आला।
नानी का सन्दूक निराला।