भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिलबिल जी / सुंदरलाल 'अरुणेश'

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:36, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुंदरलाल अरुणेश |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल,
करते रहते किलबिल-किलबिल।

कुर्ता इनका बिल्कुल चिरकिट,
सिर को झिटकें जैसे गिरमिट।

पाजामा है ढिलमिल-ढिलमिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।

बात-बात में करते टिर-टिर,
चलते-चलते पड़ते गिर-गिर।

कहते हैं सब इनको पिल-पिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।

दिन भर ठुनका करते ठिन-ठिन,
लोट-लोट जाते हैं पल छिन।

बिस्कुट पाकर हँसते खिलखिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।