Last modified on 28 नवम्बर 2015, at 16:10

म्हारै रचाव रा पगलिया / संजय पुरोहित

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

म्हारा रचाव रा पुहूप
घिर जावै
चारूं मेर
कांटा भरयोड़ै
मून सूं
आकळ-बाकळ आखर
करै है रूदाळी
मून पण
म्हैं उठाऊं
अरथां‘र विचारां री हंसूली
अर
बाढूं इण कांटा नै
अर सोधूं आणी हथैली
घाव तड़फीज्यौड़ा
केई सबदां री
सरक रैयी है सांस
म्हैं पुचकारूं करूं खेचळ
अर करूं सिणगार
सलीके सूं
क्यूं कै आखर हुय तो है
म्हारै सिरजण रो आंगणौ
अर उन आंगणे है म्हारै
रचाव रा पगलिया