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कमाल की औरतें ३७ / शैलजा पाठक
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बगल के कमरे से
ऊंची आवाज़ों का आना
सामान का बिखर जाना
छोड़ दूंगा चली जाऊंगी का
बार-बार दुहराया जाना
कुछ तमाचे सिसकियां
कुछ ठहरा सा सन्नाटा
देर रात पास वाले कमरे में
कांपते रहे बचे
पांच साल की गुडिय़ा
जरा से बड़े भाई की गोद में
चिपक कर सो गई
इस तरह एक और सुबह हो गई।