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ताँका / ज्योत्स्ना शर्मा

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1
बुहार दिए
निराशा के पत्रक
जा पतझर!
सुधियों की वीणा है
पाया रस निर्झर!

2
तुम सूरज!
मैं रससिक्त धरा
खूब तपा लो,
मेरे मन यादों का
गुलमोहर झरा।

3
शर्मीली भोर
उतरी धीरे-धीरे
पूर्व की ओर
लो डाल गया रंग
ये कौन? हुई दंग।

4
खेल तो लूँ मैं
होली संग तुम्हारे
ज्यों रंग डालूँ
तुमपे कान्हा, भीगें
मन, प्राण हमारे।

5
नया सूरज
नया सवेरा लाए
मन मुस्काए
ख़ुशियों की रागनी
ये मन-वीणा गाए।

6
उषा मोहिनी
नभ पथ चली, ले
सोने सी काया
पीछे प्रीत पाहुन
दिवस मुग्ध, आया।

7
भोर है द्वार
गाते पंछी करते
मंगलाचार।
पवन भी मगन
प्रेम वर्षे अपार।

8
झीनी चादर
सिहरा सा सूरज
ढूँढे अलाव।
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव!

9
ठिठुरी धूप
ढूँढे है, कहाँ गया?
सूरज भूप।
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप?

10
तुहिन पुष्प
अम्बर बरसाए
धरा लजाए।
नवोढ़ा, सिमटी-सी,
ज्यों छुपी -छुपी जाए।