भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नूनू बाबू सिनी सें / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 17 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=एक छड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अरे बुतरुआ पिहनें चश्मा
होय वाला छौ नया करिश्मा
जे नै चाहै पढ़ै-लिखै लेॅ
तहियो ऊँचे-ऊँच चढ़ै लेॅ
कोय मायने में ज्ञान नै कम
पन्नीये रँ बुद्धि चमचम
ओकरो लेॅ छै अवसर चानी
है ले एक सौ एक पिहानी
अरे बुतरुआ इन्टु-पिन्टु
आनलेॅ छियौ नया निघण्टु
घोकें, दुसरौ केॅ घोकबाव
अबकी नै छोड़ना छै दाव
तहूँ बहावें ज्ञान रोॅ बोहोॅ
पंडित-ज्ञानी मानतौ लोहोॅ ।