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ट्विटर कविताएँ / मंगलमूर्ति
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४.
बिंदी
चमक रही है
गोरे माथे पर तुम्हारी
बिंदी
तुम्हारी उलझी
लटों की ओट से
कह रही हो जैसे
होंठ दाँतों से दबाये -
नहीं समझोगे तुम कभी
मेरे मन की बात !
५.
कविता एक तितली सी
उड़ती आती और बैठ जाती है
मेरे माथे पर सिहरन जगाती
किसी कोंपल को चूमती
पंख फड़फड़ाती
गाती कोई अनसुना गीत
और उड़ जाती अचानक
६.
ज़ू में बैठा हूँ मैं
लोग तो जानवरों को
देख रहे हैं
मैं उन लोगों को
देख रहा हूँ
और कुछ लोग
आते-जाते
हैरत-भरी नज़रों से
मुझको भी
देख लेते हैं
७.
मैं एक खंडहर हूँ
कब्रगाह के बगल में
मेरे अहाते में
जो एक दरख़्त है
ठूंठ शाखों वाला
उस पर अक्सर
क्यों आकर बैठती है
सोच मे डूबी
एक काली चील?