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बिना सहारे / तेज प्रसाद खेदू
Kavita Kosh से
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बिना सहारे हमने
बीते हुए समय को मुट्ठी में
कैद कर रखा है।
और आसमान की ओर देखते हुए
चुपचाप बैठे हैं।
हम कुछ सोचते हैं
पर कह नहीं पाते।
और व्यक्त हो जात हैं वे जिनका
कोई वास्ता नहीं होता।
हम जब हँसना चाहते हैं।
तब आस-पास का माहौल देखकर
हमारी आँखों में छल-छला आता है पानी।
और हम एक मशीन की तरह
पूरी करते रहते हैं
अपनी दिनचर्या
निभाते रहते हैं
अपना दायित्व
और मुट्ठी में कैद
बीतता रहता है समय
चुप-चाप।