भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डांखळा 4 / विद्यासागर शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यासागर शर्मा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(12)
आछी तरियां रोटी ढक'र राधा दफ्तर जांवती
लारै स्यूं बिलड़ी आ'र रोज-रोज खांवती
होगी जणा तंग
सोच्यो नयो ढंग
आती बरियां कम्प्यूटर में फीड कर'र आंवती।

(13)
गांव में नामी चोर होया करतो 'गोरियो'
पक्को पाकेटमार हो, मानेड़ो सटोरियो
गयी खुद री बरात
ढुकाव वाळी रात
नेण करती सासूजी रो तोड़ लियो बोरियो।

(14)
पाड़ौसी स्यूं बळ्या करतो जीतसिंह 'जोधा'
सुहाता कोनी पाड़ौसी रै बगीचै रा पौधा
नीयत ही बद
कर दी बण हद
फाटक खोलर बाड़ दिया दो चार गोधा।