भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीप जलता रहे / मनोज जैन मधुर

Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज जैन मधुर }}{{KKCatGeet}} <poem> नेह के ताप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नेह के
ताप से
तम पिघलता रहे
दीप जलता रहे

शीश पर
सिंधुजा का
वरद हस्त हो
आसुरी
शक्ति का
हौसला पस्त हो
लाभ-शुभ की
घरों में
बहुलता रहे
दीप जलता रहे
दृष्टि में
ज्ञान-विज्ञान
का वास हो
नैन में
प्रीत का दर्श
उल्लास हो
चक्र-समृद्धि का
नित्य
चलता रहे
दीप जलता रहे
धान्य-धन
सम्पदा
नित्य बढ़ती रहे
बेल यश
की सदा
उर्ध्व चढ़ती रहे
हर्ष से
बल्लियों दिल
उछलता रहे
दीप जलता रहे
हर कुटी
के लिए
एक संदीप हो
प्रज्ज्वलित
प्रेम से
प्रेम का दीप हो
तोष
नीरोगता की
प्रबलता रहे
दीप जलता रहे