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पिता / आरती तिवारी

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उन्हें सदा एक पिता सा ही पाया
शायद उनके पिता
उन्हें सौंप गए थे दायित्व
अपने पितृव्य का

तूफ़ान आये
और गुज़रते रहे आकर
कभी माँ कभी पत्नीविहीन कर
पिता अंदर से टूटे
ऊपर से हरियाते रहे
साथ जुड़ी टहनियों को
पिलाते रहे,जीवद्रव्य
माइटोकोन्ड्रिया बनकर

जीवन की किताब में
लिखवा लाये थे
सतत कर्म का लेखा
हस्तरेखाओं में लुप्त थी
विश्राम की रेखा
सुख के खानो में दर्ज़ थीं
कुछ मासूम मुस्कानें
उन्हीं से उम्र भर
काम चलाते रहे

ज़िन्दादिली का स्टॉक
काफ़ी था
दुखों के मुक़ाबिल
बिताने को एक उम्र
इसी के दम पे
खुद को जिलाते रहे