भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह ऋतु मधुमास की / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 25 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> फूट आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फूट आए नए कोंपल
यह ऋतु मधुमास की
छा गई है
फूल, फल आनंद की खुशबू
गुनगुनाती धूप भी अब
कर रही जादू
कूकने फिर लगी कोयल
यह ऋतु मधुमास की
खेत में फिर
दलहनी की फसल लहराई
और झूमे पात-डाली
मस्त पुरवाई
हर तरफ हो रही हलचल
यह ऋतु मधुमास की
महक महुए की
करें मन को नशीला-सा
हो गया है
प्रेममय मौसम हठीला सा
प्रिय-मिलन को हृदय विह्वल
यह ऋतु मधुमास की