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याद बहुत आते हैं / प्रमोद तिवारी

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याद बहुत
आते हैं
गुड्डे-गुड़ियों बाले दिन
दस पैसे में
दो चूरन की पुड़ियों
वाले दिन
ओलम, इमला, पाटी, बुदका
खड़ियों वाले दिन
बात-बात में
फूट रही
फुलझड़ियों वाले दिन

पनवाड़ी की चढ़ी उधारी
घूमें मस्त निठल्ले
कोई मेला-हाट न छूटे
टका नहीं है पल्ले
कॉलर खड़े किये
हाथों में
घड़ियो वाले दिन
ट्रांजिस्टर पर
हवामहल की
कड़ियों वाले दिन

लिख-लिख, पढ़-पढ़
चूमें-फाड़ें
बिना नाम की चिट्ठी
सुबह दुपहरी शाम उसी की
बातें खट्टी-मिट्ठी
रूमालों में फूलों की
पंखुड़ियों वाले दिन
हड़बड़ियों में
बार-बार
गड़बड़ियों वाले दिन

सुबह-शाम की
दण्ड-बैठकें
दूध पियें भर लोटा
दंगल की ललकार सामने
घूमें कसे लंगोटा
मोटी-मोटी रोटी
घी की
भड़ियों वाले दिन
गइया, भैंसी
बैल, बकरियाँ
पड़ियों वाले दिन

दिन-दिन बरसे पानी
भीगे छप्पर
आँखें मींचे
बूढ़ादबा रही हैं झाडू
सिलबट्टा के नीचे
टोना सब बेकार
जोंक, मिचकुड़ियों वाले दिन
घुटनों-घुटनों पानी
फुंसी-फुड़ियों वाले दिन

घर भीतर
मनिहार चढ़ाये
चुड़ियाँ कसी-कसी सी
पास खड़े
भइया मुसकायें
भौजी फंसी-फंसी सी
देहरी पर
निगरानी करतीं
बुढ़ियों वाले दिन
बाहर लाठी-मूंछें
और पगड़ियों वाले दिन

तेज धार करती
बंजारन
चक्का खूब घुमाये
दाब दांत के बीच कटारी
मंद-मंद मुसकाये
पूरा गली-मोहल्ला
घायल
छुरियों वाले दिन
दुरियों-छुरियों
छूट रही
छुरछुरियों वाले दिन

‘शोले’ देख
छुपा है ‘बीरू’
दरवाजे के पीछे
चाचा ढूंढ़ रहे हैं

बटुआ फिर
तकिया के नीचे
चाची बेंत
छुपाती घूमें
छड़ियों वाले दिन
हल्दी गर्म दूध के संग
फिटकरियों वाले दिन

ये वो दिन थे
जब हम लोफर
आवारा कहलाये
इससे ज्यादा
इस जीवन में
कुछ भी कमा न पाये
महंगाई में
फिर से वो
मंदड़ियों वाले दिन
कोई लौटा दे
चूरन की
पुड़ियों वाले दिन

-‘शोले’ हिंदी सिने जगत की सफलतम फिल्म
-‘वीररू’ फिल्म का नायक
-‘हवा महल’ आकाशवाणी की लोकप्रिय नाटिका