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ह्यांवत मा ना जुरिहै अबकी / बोली बानी / जगदीश पीयूष
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ह्यांवत मा ना जुरिहै अबकी
पइरउ क्यार बिछउना
बिटिया के घर जनमु लिहिसि है
सूखा मा लरिकउना
पारसाल की बाढ़ ते अब लौं
उबरि न पायेन हम
कोठरी की भसकी देवाल का
जोरि न पायेन हम
फीस न भरि पायेन इहिते
घर बैठ रहा छोटकउना
लिखी बदी सब आय कहति हैं
कहे करे ना होय
ई दुरदिन मा देखि लीन हम
हितू न आपन कोय
सिर्फ लोनु रोटी है अब तौ
भूलि गवा मिठलउना
राहत का सरकारी पइसा
डकरि गये परधान
हम जइसेन के घर ना गोंहूँ
ना मूठी भर धान
दउरि रहा नेता लीन्हे अब
कागद क्यार घोड़उना