भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताज के बचाव का सवाल है / मृदुला झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काम यह जनाब बंेमिसाल है।

हो रहा सवाल पर बवाल क्यों,
कौन कर रहा यही मलाल है।

कत्ल की जगह कोई निशां नहीं,
ये तो तेरे हुस्न का कमाल है।

धर्म तो है सब दिलों को जोड़ना,
मेरा अपना तो यही ख़याल है।

ले चलेंगे वो कहाँ पता नहीं,
राहबर ही बन गया दलाल है।