भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पण थूं / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:02, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वाह, थारी मुळक
जे थूं अेकर फेरूं मुळक देवै
तो म्हैं संसार रा सगळा
माणक-मोती
थारै ऊपर वार दूं
मुळक!
अेकर तो मुळक
जीसा कैयो हो कै
बरसां पैलां
थारो मुळकणो
सूखतै खेतां नै हर्या
अर दम तोड़तै मिनखां-डांगरां नैं
जीवण रो वरदान दियो हो
देख टाबरां री टोळी
बीं री आंख्यां मांय
थारा ईज सुपना है
इणां रा खिलता उणियारा
कठैई कुमळाय नीं जावै!