भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर का गीत / पद्माकर शर्मा 'मैथिल'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:56, 17 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर शर्मा 'मैथिल' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहरों पर उतरी किरण
दरक उठा नीला दर्पण

चाँदी से तट पर सोने-सी धूल
पुरवैया गाँव की राह गयी भूल
पानी में टूटता गगन
दरक उठा नीला दर्पण

खंडित प्रतिबिंबों का छितराया रूप
पेड़ों से छन रही अनब्याहि धूप
छांहों में लग गयी अगन
दरक उठा नीला दर्पण

मछुए की डोरी का थर्राता गात
चुरा गया मछली के होठों की बात
वंसी की तीखी चुभन
दरक उठा नीला दर्पण

लहरों पर उतरी किरण
दरक उठा नीला दर्पण