भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 16 नवम्बर 2007 का अवतरण
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से अजनबी रहे
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे
हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे