भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गइल भइसिया पानी मे / जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 21 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद द्विवेदी |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राजनीति कS चकरी घूमल
 आग लपेटल घानी में।
गइल भंइसिया पानी में॥

बागड़ बिल्ला नेता बनिहें
करिया अक्षर बेद बखनिहें
केहु के कब्जावल माल पर
मार पालथी शान बघरिहें।

 कुरसी से जब पेट भरल ना
 खइलस चारा सानी में।
 गइल भंइसिया पानी में॥

मचल करी ई हाहाकार
करिहें कुल उलटा ब्योपार
मरन अपहरन राहजनी पर
एहनिन के सउसे अधिकार।
 
 जनता तभियो जै-जै बोली
 छवनी छइहें रजधानी में।
 गइल भंइसिया पानी में॥

नीमन जन, घर छोड़ परइहें
उनका पीछे उहवों जइहें
लूट पाट भा हेरा फेरी
ई खेला न कबों भुलइहें।

 सरल कहाँ बा इनके बुझल
 रेकड़ तुरिहें बैमानी में।
 गइल भंइसिया पानी में॥
भूखे पेट घास के रोटी
पानी बिना गुथे ना चोटी
साले साल गरज पर करजा
नाही निभे घरे में बेटी

 अब्बो ले डड़वार बनल ना
 भइल छेद ओरियानी में।
 गइल भंइसिया पानी में॥